समान नागरिक संहिता: भारतीय महिलाओं को समान संपत्ति की गारंटी









By Sampa Karmakar Singh





(This blog is the sixth in the series of blogs that JILS will publish in various vernacular languages as part of its initiative to mark the International Mother Language Day.)





एक समय था जब महिला को ही संपत्ति समझा जाता था अब स्थिति पहले से बेहतर है लेकिन अब भी हम पूर्णतः लिंग पक्षपाती कानून को बदलने में कामयाब नहीं हो पाए हैं, खासकर संपत्ति से जुड़े हुए कानून जो महिलाओं के प्रति पक्ष पाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44[1] में समान नागरिक संहिता का प्रावधान प्रारंभ से ही है l हाल ही में उत्तराखंड ने समान अधिकार संहिता को हरी झंडी दिखाई है और अब बस माननीय राष्ट्रपति की मंजूरी की मोहर लगनी बाकी है; इसके बाद उत्तराखंड गोवा के बाद भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला दूसरा राज्य बन जाएगा।

 हमारे देश में पर्सनल लॉ या पारिवारिक कानून के तहत हर धर्म में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कानून का प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 14[2] में समानता का अधिकार है फिर चाहे आप किसी भी धर्म के हो, लेकिन पर्सनल लॉ के नाम पर समाज में आज भी कानून अलग-अलग ही व्याप्त है। महिलाओं की बात करें तो आज भी वह द्वितीय श्रेणी की नागरिक है, इसलिए हर पर्सनल लॉ में चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन या पारसी ही क्यों ना हो, एक बात जो समान है वह है औरत के प्रति असमानता।  

इन विषमताओं को दूर करने का एक अच्छा विकल्प है समान नागरिक संहिता, जिसके माध्यम से पुरुष और महिलाओं के बीच की असमानताएं दूर की जा सकती है ।  विभिन्न धर्मों में विषम प्रावधानों की एक लंबी सूची है और मजे की बात तो यह है कि यह असमानताएं कानून की किताब में ही लिखी हुई है। मैं कुछ असमान प्रावधानों पर प्रकाश डालना चाहूंगी:-





1.हिंदू लॉ: पुरुष के लिए उसका परिवार और औरत के लिए उसका ससुराल[3]





हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के धारा 8 के तहत अगर एक हिंदू पुरुष का देहांत हो जाए बिना वसीयत बनाएं तो उसकी सारी संपत्ति उसके परिवार वालों को मिलती है जबकि अगर एक हिंदू विवाहित महिला की मृत्यु हो जाए बिना वसीयत बनाएं तो क़ानूनन धारा15 के तहत उसके बेटे और बेटियों (किसी भी पूर्व-मृत बेटे या बेटी के बच्चों सहित) और पति की गैर मौजूदगी में उसकी सारी स्वयं अर्जित संपत्ति उसके ससुराल वालों को मिल जाती है । क्या यह समानता है? भारत के विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट संख्या 207 में किसी हिंदू महिला द्वारा स्व अर्जित संपत्ति के प्रति अपना कोई वारिस छोड़े बिना निर्वसियत मृत्यु की दशा में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 15 को संशोधित करने का प्रस्ताव रखा है ।[4]





2. मुस्लिम लॉ: बेटा ज्यादा बेटी उसका आधा





यूं तो इस्लाम में पहले से ही बेटियों को संपत्ति का अधिकार मिला हुआ है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जितनी संपत्ति बेटे को मिलती है बेटी उसकी आधी संपत्ति की ही हकदार होती है? तो किसको क्या और कितना मिलेगा यह उसके स्त्रीलिंग या पुलिंग होने पर ही निर्भर करता है ।





3. क्रिश्चियन लॉ: पिता सब कुछ मां कुछ भी नहीं





 भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के धारा 42 के तहत जहां यदि निर्वसीयती[5] का पिता जीवित है तो वह संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा। कानून के तहत ही माता और पिता के बीच यह अंतर, पितृसत्तात्मक समाज का एक उत्कृष्ट उदाहरण है ।बड़ी ही विचित्र बात है कि जो माँ बच्चों को 9 महीने अपने गर्भ में रखती है उससे ज्यादा महत्व बच्चे के पिता को दी जाती है वह भी कानून के तहत । भारत के विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट संख्या 247[6] में ईसाई माता और पिता के लिए समान प्रावधानों की सिफारिश की। इस रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 42 से 46 के विद्यमान उपबंध प्राचीनतम प्रकृति के हैं और लिंग पर आधारित भेद-भाव की पुष्टि करते हैं । धारा 42  ईसाई माता के प्रति प्रतिकूल और अन्यायपूर्ण है ।





4.  पारसी लॉ: अगर की गैर पारसी से शादी तो सिर्फ पारसी महिला ही गैर पारसी,  पारसी पुरुष नहीं





हमारे देश में विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत दो व्यक्तियों को शादी करने का अधिकार है फिर चाहे वह किसी भी धर्म से ही क्यों ना हो । यह बात गौर करने वाली है कि जब एक पारसी पुरुष किसी गैर पारसी महिला से शादी करता है तो वह पारसी ही रहता है और इस शादी से होने वाले उसके बच्चों का धर्म भी पारसी होता है,  जबकि अगर एक पारसी महिला गैर पारसी पुरुष से शादी कर लेती है, वह भी विशेष विवाह अधिनियम के तहत, तो भी वह शादी के बाद गैर पारसी मानी जाती है,[7] उसका और इस शादी से हुए उसके बच्चों का धर्म उसके पति के धर्म पर निर्भर करता है । यहां भी धर्म का निर्णय पुरुष के धर्म से ही होता है और ऐसी स्थिति में वह पारसी महिला अपनी पारसी परिवार में संपत्ति का अधिकार खो देती है।





समान नागरिक संहिता: एक देश एक कानून





एक ही देश में अलग-अलग कानून होने से सबसे ज्यादा अन्‍याय महिलाओं के साथ ही हुआ है। एक तरफ तो देश का संविधान समानता की बात कहता है और दूसरी तरफ भिन्न-भिन्न धर्म अपनी भिन्न-भिन्न पारिवारिक कानून के तहत असमानता फैलI रही है वह भी कानूनी तरीके से, कानून बनाकर। सबके लिए समान कानून का प्रावधान होना ही चाहिए फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष, माता हो या पिता, विवाहित हो या अविवाहित,  पति हो या पत्नी,  बेटा हो या बेटी । भारत के विधि आयोग ने समय-समय पर इन आसमान प्रावधानों को संशोधित करने का प्रस्ताव रखा है । हाल ही में 2018 में भारत के विधि आयोग ने पारिवारिक कानून सुधरो पर परामर्श पत्र द्वारा बहुत सारे संशोधनों को प्रस्तावित किया है ।

ऐसा नहीं है की संपत्ति से जुड़े सारे कानून महिलाओं के ही खिलाफ है कुछ प्रावधान पुरुषों के भी खिलाफ है जैसे की एक हिंदू मां अपने मृत पुत्र की प्रथम श्रेणी की उत्तराधिकारी है जबकि पिता द्वितीय श्रेणी का उत्तराधिकारी है और प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी कि उपस्थिति में द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारी को संपत्ति पर अधिकार नहीं होता है ।

यह जरूरी है कि एक देश में एक कानून सबके लिए व्याप्त हो जिसमें किसी भी जाति, धर्म, लिंग या किसी भी प्रकार की कोई भी असमानता के लिए कोई भी स्थान ना हो । जब हमारे देश का दंड विधि और अन्य कानून सबके लिए समान हो सकता है  तो फिर संपत्ति से जुड़े कानून क्यों नहीं? लिंग पक्षपाती कानून को बदलने का उचित समय आ गया है । समाज को अपना दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है, आज भी हक त्याग के नाम पर महिलाओं को उनके  संपत्ति के अधिकारों से वंचित किया जा रहा है । समाज में बदलाव लाने है तो कानून को भी समय के हिसाब से बदलना ही पड़ेगा वरना असमानताओं का यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा और धर्म के नाम पर भारतीय महिला इसका शिकार होती रहेगी। महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं से जुड़े कानून को भी सशक्त करने की आवश्यकता है और सामान नागरिक संहिता के द्वारा यह संभव है।





The author, Sampa Karmakar Singh, is an Assistant Professor of Law at the West Bengal National University of Juridical Sciences (NUJS), Kolkata.










[1] राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा l

[2] राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

[3] ओमप्रकाश एवं अन्य बनाम राधाचरण एवं अन्य, AIR 2009 SC (SUPP) 2060

[4] chrome extension: //efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s3ca0daec69b5adc880fb464895726dbdf/uploads/2022/08/2022081070.pdf last visited 19/02/2024.

[5] जिसने कोई वसीयत न की हो ।

[6] Chrome extension: //efaidnbmnnnibpcajpcglclefindmkaj/https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s3ca0daec69b5adc880fb464895726dbdf/uploads/2022/08/2022081663.pdf last visited 19/02/2024.

[7] गुलरुख गुप्ता बनाम बुर्जुर पारदीवाला https://indiankanoon.org/doc/144461915/

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